मनीश:
मुक्तेश तु बदल गया है

मनमोहन:
आँखों से झलकता प्यार,
मुक्तेश मेरा यार, कितना शांत बन गया,
कितना मासुम, आँखों से झलकता प्यार

मुक्तेश:
वाह वाह तुम तो शायर बन गए

मनमोहन:
मैं तुझे ढुन्ड़ता रहा, मेरा मन तुझे तरसता रहा,
तु कहाँ था अजनबी बनके, तुझे मिल के मजा आ गया

पुच्छ साहिल से, पूछ हवा से, जो बेहती रही पर तेरी आवाज़ मुझे ना पहुंची,
तु जो चुस्त रहा अपने मतलब से, ऐ यार क्या मैं तुझे कभी याद आया

लो आज मैं फेंकता हूँ अपने जीभ के नीचे से कुछ चुम्मा,
जो गुब्बारा बन के तेरे मुकाम पहँच जाये तो, क्या केहना

मुक्तेश:
तेरी कमी भी है तेरा एह्शाश भी है, तु दूर भी है मेरे पास भी है.
खुदा ने यूँ नवाज़ा तेरी दोस्ती से मुझको,
की मुझे खुद पे गुरुर भी है और तुझपे नाज़ भी है.

मनमोहन:
“उल्टा शायर, शायर को डांटे, शायरी के बहाने दिल्लगी को चाटे”
मैं तेरे बावजूद मजाक़ कर लिया करता हूँ, तेरी याद आए तो बेधड़क रोता हूँ

मुक्तेश:
प्यार कभी पुराना नहीं होता, जिंदगी का हर पल सुहाना नही होता.
जुदा होना तो किस्मत की बात है, पर जुदाई का मतलब भुलाना नहीं होता

मनमोहन:
आज भी तेरे तस्वीर से बात करता हूँ, जुदाई पल याद आए तो क्या, सुकून भरता हूँ
सबसे पूछता रहा तेरे मुक्काम और तेरे दास्ताँ, तु जो आज आ गया मेरे सपनोँ को सच की दुआ लग गयी

मुक्तेश:
एक दील वेजुबान जो कुछ कह नही सकता किसी की जुदाई ये सह नहीं सकता,
कास व समझ पाते इस दिल की आवाज की कोई है जो तुम्हारे बिना रह नहि सकता

मनमोहन:
लम्बी थी वह राह जिसे हम ने चल दिया, तेरे बग़ेर तो क्या, इस राह में आके तुझ से मिल लिया

मुक्तेश:
डूब जाती है कस्तियाँ जब आते हैं तूफान. याद रह जाती है बिचार जाते  हैं इन्सान. याद रखोगे तो बहुत करीब पाओगे, भूल गए तो ढूंड ते रह जाओगे.

मनमोहन: भूल जाना तो मुमकिन है, पर भुलाना नहीं, ऐ दोस्त, करीब आके तो देख तेरे ही वजुद बाकि रह गए, मैं मर चूका हूँ

मुक्तेश:
Friendship never fades wid time, it becomes more trustful like old wine,only a friend can understand d unsaid words.
तुम्हारी हिंदी अब काफी अछी हो गई है पहले से.

मनमोहन: सिर्फ हिंदी की रहती तो कबसे हो जाती, जिन्दगी के तरीके तो कितने बिचारों से बँधे हैं …

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