एक बुलंदी
जो मिलजाती तो मैं एक तारा बन जाता
लेकिन अपने कमियों से परेसान रेहता
एक हस्र
जो मिलजाती तो मैं एक कहानी बन जाता
लेकिन अपने तन्हाई से परेसान रेहता
एक मंजिल
जो मिलजाती तो मैं एक शाह-जहान बन जाता
लेकिन अपने सवालों से परेसान रेहता
एक सुबह
जिसके मिलने से मैं एक फूल सा बन जाता
लेकिन अपने मुरझाने की तकलीफ को समझ नहीं पाता
एक रात
जो ख्वाबों के अनगिनत त्यौहार लाते
लेकिन एक खोई हुई ख़ुशी की याद ले आती
एक राज़
जो सब को पता होने से उनकी वाह तो मिलती
लेकिन वाह को बटोरते उनकी ताने भी सुन ने को मिलती
अपने लिए ख़ुशी की परछाई धुन्डते हुए मैं उन्की परवाह नहीं करता
Originally: अपने लिए ख़ुशी की परछाई धुड़ते हुए मैं उम्र की परवाह नहीं करता