सुषमा स्वराज
नाचती है कमाल की, बुल बुल नहीं है, पैसेके लिए नहीं नाचती
कहती है उसे वीर जवानों पे फक्र है इसलिए नाचती है,
और वह भी इस देश की वीरांगनाओं में गीनी जाती हैं, कौन नहीं है?
ममता नहीं है? जय ललिता नहीं है? मायावती नहीं है, राबरी नहीं है? फूलन देवी नहीं है? या माधुरी दीक्षशीत नहीं है?
ये सब भी नाचती थीं “चुनर चुनर, सब की लुट गयी हुनर हुनर”
देश एक मेहफ़िल बनगयी है
झूमो झुमाओ, घुमो घुमाओ, फेंको, फिंकवाओ, लूटो, लुट्वाओ
जब लोगों की होश आयेगी, तब तक चोर गायव, जज़ भी बेईमान, नेता तो बेईमानी की मूरत
जनता को गुमराह करना आसान, इसे सचाई की परख करनी थोड़ी मुश्किल लगती है, फायदा इसी बात का उठाओ
एक बार देश ने बड़े बेइजती से नकारा था फिर भी ये अड़े हैं देश की धार्मिक भावनाओं को मजाक बनाने पे,
जिसको साधू बोलते हैं वह भी इनके तरह बेईमान निकलते हैं…
या तो इनके हाथ बंधे हैं और आँखों में परल आ गयी या ये भी दाश्तानों के गुलाम बन गए हैं,
सचाई को नकारते नकारते सचाई इन्हें भी नकार चुकी है,
चलो हम सब भी उन तवायफ़ों के मुहतरम बन जाएं जो मुझे मेहफ़िल की रंगोली में मिलति थीं
कम से कम उनमें तो सचाई थी, वादा करके मिलने आती थीं
सही लिखा है. सार्वजनिक जीवन में उच्च पदों पर आसीन लोगों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करते समय संयम बरतना ही चाहिए.
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