इस देश में बहत हल्ला चल रहा है. जिसकी इतनी जरूरत नहीं है. मैं ये क्यों बोल रहा हूँ?

दस साल पहले जो हालत थी इस देश की उसमें बहत ज्यादा परिवर्तन आए हैं.

(बहत ऐसे भी परिवर्तन आए हैं जिसके लिए आप चिंता प्रकट करते हैं)

इस देश में मुझे लगता है, पासपोर्ट ऑफिस की कहानियां सबसे दर्दनाक होती हैं. दस साल पहले भुबनेश्वर में जो पासपोर्ट ऑफिस थी वह एक छोटा सा और भीड़ भरकम वाली ऑफिस थी. उसका क्याम्पस धुल का था. लाइन यानि क्यु लम्बी लगती थी. मैं अपने पासपोर्ट के लिए उस ऑफिस में कमसे कम १० बार गया था, अपने बेहेन के स्कूटी पे. आसान रेहता है, ऑटो रिक्शा से, अगर आप गाड़ी ठीक चलाते हो.

(ठीक का मतलब दुर्घटना से भी आप इतने चौकने रेहते हो की अभी आप की १० बिं ओबिचुअरी नहीं है)

मैं गाड़ी बहत अच्छा चलाता हुं !!

(आज कल मेरे नब्ज थिरकने लगे हैं, भीड़ वगेरा में, फिर भी ठीक चला लेता हुं, लेकिन भुबनेश्वर की ट्राफिक मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं न की ढेंकानाल की)

लेकिन आप इन्सान से अगर सुरक्षित रह गए इसका मतलब नहीं आप गाय से बच जायेंगे. ये हमारे रस्ते पे फ्रीडम की त्यौहार मनाते हैं. मैं दो बार अपने स्कूटी से गाय के वजह से गिरा हुं, इनकी आँखों में मासूमियत होती हैं लेकिन इनके चाल की परिभाषा आज तक किसी ने नहीं दिया. ये कोई रुल नहीं फलो करते. मैं पेहना हुं एक माइक्रो कट्टन जींस INR ६०० की और वो आ रही है आगे से, अचानक सी, और एक तरफ बाली (sand). गाय और बाली का जोड़ी खतरनाक होता है ठीक जैसे औरत और शराब का. दोनों को एक साथ मत लो, अगर कोई आप्शन है तो. खतरा कहाँ से आयेगा ये तुम्हे कोई नहीं बता सकता शिवाय खतरा के.

मैं गिरा बाली के वजह से क्योंकि गाय एक दम गाड़ी के सामने और बाएं तरग्फ़ बाली और मैंने मोड़दिया बाली के ऊपर. माइक्रो कट्टन फट गयी घुटनु के पास

(मनुष्य शरीर में बारदातें हमेशा होती है घुटनु के पास, ये आप को कोई योग नहीं सिखाएगा सिर्फ इन्सानी तजुर्बा, अपने घुटनु को हमेशा सलामत रखो, देखा नहीं बाजपाई का क्या हुआ था?)

तो गिरा में, गाय और बाली के वजह से. हमारे रस्ते पे गाय को हमेशा बदनाम किया जाता है और श्रेय जाता है बजरंग दल और आर एस एस और उनके मुखोटा बी जे पि के पास. कभी किसीने बाली को दोष नहीं दिया. कौन कंट्राक्टर रस्ते पे बाली डालता है और उसे छोड़ देता है लोगों को दुर्घटना से मरने के लिए? कोई अपने घर के सामने रस्ते पे बाली छोड़ता है “बाप का रास्ता” है इसलिए. कोई कानून और कोई विचार आज तक इस देश में आया नहीं जो इस सचाई को बदल सके.

गाय के बात करते हुए याद आई मुझे आज से एक साल पहलेकी बात. भुबनेश्वर की हाईवे पे मैं स्कूटी लेके निकला, सुबह को, क्यों की मैं जल्दी जग गया था. रस्ता चौड़ा, कोई ट्राफिक नहीं, हाईवे है. एक गाय गिरा है दुर्घटना से. कोई बड़ा सा गाड़ी उसको मारा है बेरहमी से, दुर्घटना से नहीं. कोई इंसान इतना भी बे-चौकन्ना नहीं की वह एक धीरे चलती हुई जानवर को ना देख सके, कितना तेज था वह गाड़ी, बिलकुल ट्राफीक नहीं, सुबह है. (शायद कोई आउट ऑफ़ स्टेट ड्राईवर था) गाय बहत बड़ा था, मुहं मोड़ के गिरा था. जैसे कोई गा रहा हो उसके लिए “मुड मुड के ना देख मुड मुड के” इतनी कम वक़्त उसको मिली होगी दर्द के लिए उसकी आहट भी किसी तक पहुंची नहीं होगी. कोई मूवी बनादो “बेदर्दी आहट”. बात इतने में ना सिमटी. ४०० मीटर आगे मरे हैं ३और. कोई ट्रक था जिसने अपनी पाशविकता को हिन्दू समाज के ऊपर कहर ढाने के लिए है ऐसा सोचा था. बड़ी दुःख हुई मुझे गायों की मौत से…मैं गया अपने चक्कर लगाने के लिए, पेहले गया सी भी रमण कॉलेज के अन्दर. गेट कीपर ने पूछा तो बोला वस कॉलेज घूम लूँगा, देखने के लिए आया हुं, अच्छाई की जवाब उसने अच्छाई से दिया.

फिर में गया वहां जहाँ आइ आइ टी बन रहा है, सरभे के लिए, साले लोग कितने आगे ले रहे हैं देश को. कुछ नहीं बना था वहां पर, एक साइनबोर्ड भी नहीं. (वहां नाइज़र भी बन रहा है, उसका भी कोई साइन नहीं था) दो चार और इंस्टिच्युट बन रहे है, जिनका बोर्ड लगा था, जैसे (कोई इंस्टिच्युट ऑफ़ स्किन डिज़ीज़, नाम भी अजव का था) १०, १५ की.मी. था जहांसे मैंने शुरू किया था, गाँव और जंगल से होके मैं गया. जब तक कोई एनक्रोचमेंट नहीं रहेगा रस्ते में कहीं पर भी, ऐसा सिनिक एरिया जन्नत के तरह लगेगा. लेकिन गवर्नमेंट तरह तरह के भ्रस्टाचार में लिप्त रहेगा, प्लान तोड़ेगा वगेरा वगेरा और हम वही देखने लगेंगे जो हम हमेशा से देखते आ रहे हैं. मुझे कोई कारण नहीं दीखते नाचने के लिए. मुझे दुःख और असहायता मेहशुश होती है अपनी देशवाशिओं के हालत पे, लेकिन ये सब खुश हैं अपनी हालत से और इन्सानियत को हेय्वानीयत से नहीं जोड़ते. मैं भी तरह तरह के लोगों से मिला हुं और उनके रहन सहन को अपने ऊपर निभाया हुं, मुझे ख़ुशी मिली है और उसी ख़ुशी को क्रेडिट बना के मैं ये आप को बोलता हुं. प्याट्रीओटिज्म को रेलीज़िऑन मत बनाओ.

गाय ने मुझे कहाँ ले लिया. लिजेंडरी.

मैं पासपोर्ट ऑफिस पे आता हुं, क्यों की मुझे इस देश की हालात बताने थे .

मैं उस पासपोर्ट ऑफिस जो एक छोटा सा “कोठा घर = concrete house” था उसमें कम से कम १० बार गया अपने पासपोर्ट लेने के लिए. कभी ये डक्युमेन्ट लाओ, कभी वो लाओ, कभी ये करो कभी वो करो. एक बार में नहीं बता सकते? बताये थे ना!! मैं १५ डक्यूमेंट्स लेके गया था. सर्ठीफिकेट्स, क्यारेक्टर सर्ठीफिकेट्स (कौन देगा?) प्रोपर्टी सर्ठीफिकेट्स वगेरा वगेरा.

कौन देगा क्यारेक्टर सर्ठीफिकेट्स? मैंने सरपंच से लिया (I don’t know whatever he was called, counselor) उसका एक मेड़ीसिन का दुकान था. बी जे पि का था वह. (मैं बी जे पि को पसंद करता था लेकिन ये लोग *** निकले) उसने मुझे बोला अव क्या लिखूं. पढ़ा लिखा था, लेकिन इतना भी नहीं. मैंने बोला मैं डिक्टेट करता हुं आप लिखिए. मैंने लिखा “मैं मनमोहन को बहत अछे तरह से जानता हुं, वह बहत ही सीधा वंदा है, वगेरा वगेरा, अब अपने बारे में कितने झूठ लिखा जा सकता है” उसमें कुछ गलत नहीं लिखा था पर मुझे भी वेसे बताया गया था, “…कोई अपने देश में एक बे-कानुनी इंसान को लाना नहीं चाहता, चलन और वास्तविकता कुछ और हो भी सकती है, कभी कभी अमेरिका की जो ब्यबस्था है वह ऐसे बे-कानुनी (गैर-कानुनी) लोगों को बड़े जत्न के साथ महफूज़ रखती है. यह उनके ब्यबस्थापक से अनुमोदित ना होने पर भी. (No body wants to bring an outlaw to their country, in practice it could be exact opposite, American system sometimes vehemently protects the outlaws)

प्रोपर्टी सर्ठीफिकेट्स के लिए भी वही किया जाता है. अगर इसके पास फूटी कौड़ी नहीं है तो क्यों हम इसे अपने देश में लायें. आमेरिका का जो कानून बनता है व बनता है एलिट्स और पैसे वालों से, जो दिखाना चाहते हैं वह इस देश के और कानून के रखवाले हैं. इस नियम की आधार से इंडीआन भी लुटते हैं. बी जे पि और कांग्रेस और धार्मिक अनुष्ठान सच्चाई की तौहीन करते करते विलिओनेयर बन चुके हैं, जिस बात को छुपाने के लिए वह कसम खाते हैं भारतीयता की, सेवा की, धर्म की, जातीयता की वगेरा वगेरा और रात में छेड़खानी करते हैं इस सब से. भारतीयता बेश्या है. धर्म बेश्या है. (कौन सोचता है? वही जिसे तुम संथ समझ के ऊपर बिठाते हो, उनको कोई कभी परवाय नहीं थी, भारतीयता की, सम्पति और अपनी *** में तेल. अब इस से ज्यादा क्या बोलूं)

मैंने बोला च्यार्टर्ड अकाउनटेंट को, जैसा इम्मिग्रेसन ऑफिसर को चाहिए वैसा. हम सर्ठीफिकेट्स देंगे. कितने का दरसाऊँ, २५ लाख करदो. क्या है !! हमें मालूम है, ये कितनी की है, और ये भी लिखता है ना “to whom it may concern” (कभी देखा है “to whoever it may concern, अब्बे चल”)

इस तरह मैं गया था भिषा का इंटरभिऊ देनेके लिए “कलिकता”. (How it is said in O’di’sha) बहत ही जबरदस्त लगा था मुझे कलिकता. ये २००१ की बात है. मैं कलिकता ७,८ बार जा चुका था, १९९२ से १९९४ में (तक). फिर कभी गया नहीं था. ७ साल बाद आप अपनी पसंद की जगह में आ जाएँ तो कैसा लगता है. “नात्शुकाशी यो”, यह जापानीज़ है कोई एक ऐसा स्मृति जो आप को अपनेपन की एहशाश कराती है, “nostalgia”.

भिषा इंटरभिऊ में लाइन लगी थी जबरदस्त लम्बी सी. आमेरिकान एम्बाषी का सिक्यूरिटी भि था चौकन्ना. एम्बाषी के बाहर करेंशी के दलाल भि घूमते हैं. सब आमेरिका जाने की तयारी बहत पेहले से हि कर लेते हैं. कपडे देखना, टोपी देखना, हैंडब्याग देखना, परफ्यूम देखना, लड़कियों की मुहं पे मुस्कान देखना (अब जाके शराब पी सकते हैं )

ठीक है अभी तक पासपोर्ट नहीं मिली, चलो भुबनेश्वर, पासपोर्ट लेने. मैं अपने सारी डक्यूमेंट तयार कर लिया हुं, मेरी अपनी पढाई भि चालू है, आज इधर जाओ ये सर्ठीफिकेट्स लेना है, कभी उधर जाओ व्हो लेना है. लेकिन ऐन बात ये है की पासपोर्ट ऑफिस में १० बार जाना पड़ा था जब की २०११ में सिर्फ १ या २ बार जाना पड़ेगा. तो हुई है ना इस देश में प्रगति?

उस पुराने पासपोर्ट ऑफिस में एक घुसखोर क्लर्क था, मोटा सा. उसका नाम मुझे याद नहीं, नहीं तो में आज उसको सब के सामने बेईज्जत करता. (क्यों?) वेसे मुझे पेहले से अपने प्रो’फेसर न ट्रस्ट से बताया था की INR१५० दे दो और पासपोर्ट बहत जल्दी तयार हो जायेगा. मैं पैसे देने के लिए तैयार नहीं और आज तक मेरी ये नियम लागु है. स्वतंत्रता मेरी जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो पासपोर्ट मिलना मेरी हाईस्कूल-सिद्ध अधिकार है. मुझे, और वह सब जगे हुए इंसानों को, मालूम हुई थी हाई स्कूल में, हम जिस देश में रेहते हैं उस देश की नागरिक के हिसाब से हमें पासपोर्ट मिलती है. वह पासपोर्ट हमारी अधिकार है तब तक जब तक हम ने कोई कानूनन जुर्म नहीं किया (कुछ आफिसर्स आप को यहाँ आचंभित कर सकते हैं, वह अपना काम छोड़ के लग जायेंगे आप के पीछे अगर चाहे तो, मैं ने एक ऐसा हादसा देखा पिछले साल पासपोर्ट ऑफिस में)

हम अगर बिना पासपोर्ट लेके किसी देश में जाएँ तो वहां हमें बड़ी सज्जा भि मिल सकती है. कुछ लोग जाते हैं और बिज़नेस भि करने लगते हैं. लेकिन एक आम इंसान को ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए. एक बार में, मैं अपनी भिषा लेने गया था (टोक्यो, इसे सही में बोला जाता है “त क्य ” जिस का पुराना नाम है “एदो”. सारी भारतीय भाषाओं में से भि शायद जापानीज़ और ज्यादा कोमल है, बोलने में और सुनने में. लिखने में थोड़ी कठिन रेहती है क्योंकि इसके २ अल्फाबेट्स हैं. उस के साथ साथ इसमें चाइनीज़ अल्फाबेट्स भि हैं जिसे कांजी कहा जाता है. कांजी में ५०,००० के करीब चित्र हैं जो एक शब्द या पदार्थ को सूचित करते हैं. अगर आप २००० कांजी चित्र (character) को याद रखते हैं तो आप उन सब जापानीज़ लोगों के समकख्य (समकक्ष्य) हैं जो जापानीज़ बोले जाते हैं. अगर आप ५००० कांजी जानते हैं तो शायद इस दुनिया में कोई होगा जो आप से ज्यादा क्यारेक्टर (चित्र) जानता हो, बहत हि नामुमकिन है. और जो दोनो अल्फाबेट्स के बात मैंने किया व हैं हीरा’गाना और काता’काना. एक में सारी बिदेशों की शब्द लिखे जाते हैं, इस से ध्वनि के जो नियम रेहते हैं जापानीज़ में, उसके ऊपर कोई असर नहीं आता. दूसरा अल्फाबेट्स जापानीज़ शब्दों के लिए बना है. जापानीज़ में कांजी भि एक अभिर्न्न अंग है. हर मामले में ये लोग आगे चले गए हैं, और आप कुछ ऐसे लोगों के आगे आ सकते हैं जो आप को गाली देंगे, वो बोलेंगे आप देश द्रोही हैं, आप ने इस देश में शीक्ष्या हासिल किया और आप इस देश के लिए कुछ नहीं करते. अगर तुझे इस देश की शिक्ष्या जो सदिओं से मिटी में मिली हुई हैं उसको ऊपर उठाना है तो तुझे बाकि दुनिया के बारे में भि जानना चाहिए और हमारी दुस्थ हालात से और दुस्थ उनके हालात थे जिसको वो पार कर के हमारे मार्ग दर्शन कर रहे हैं. क्यों की मैं भि उस शीक्ष्या को हासिल किया हुं सिर्फ भारत की नहीं, मेरे बिचारों में उनकी आधुनिकता तथा सूक्ष्म चिंताओं की धारा भि सामिल हैं. मैं ऐसे गीरे हुए इंसानों को सुनता भि हुं तो मुझे लगता है मैंने कोई पाप किया है.

तक्य में बड़ी तादात की लाइन लगी थी उन लोगों की जो दुसरे देश से इलिगाली (यानि बिना भिषा या फोर्जड़ पासपोर्ट से) जापान में काम कर रहे थे. तब तक मैं लगभग जापानीज़ बनगया था लेकिन एक इंसान से मिला जिसने बताया की वह जापान में पिछले ६ साल से काम कर रहा था और अब उसको डिपोर्ट किया जा रहा है. उसने मेरे साथ हिंदी में बात किया और बोला वह इंडिया से है, उसने ये भि बताया की पाकिस्तान और श्रीलंका से भि लोग वहां पर हैं जिन्हें निकाला जा रहा है. मुझे ये बात पेहले से मालूम थी की जापान में ये चलता है. एक इंडियन वंदा जो वहां पर अपना बिज़नेस १०, १५ साल से खोल रखा था एक जापानीज़ औरत से शादी कर लिया था और जापानीज़ बोलता था. उसने अपना एक साम्राज्य बनाया था, जिसके तहत वो लोगों को “swindle” भि करता था (मुझे भि किया था और अचानक से मैं एक इंसान से मिला था जिसने मेरी स्टोरी ना जानते हुए भि अपनी स्टोरी बताया, जो एकदम मेरे सिचुएसन से मिल गयी थी) उस बन्दे के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती थी क्योंकि वह जापानीज़ औरत से शादी किया था. उसके सारे फ्यामिली मेम्बर बहत हि अछे थे लेकिन ये हराम खोर लोगों को चिट करता था. उसके पास जो बन्दे काम करते थे मैंने उनसे दोस्ती बना ली और वह सब इस से ना खुश निकले. जब की जापानीज़ लोग किसी को चिट करने में यकीं नहीं रखते बरंच दूसरों की तहे दिल से मदद करते हैं. मेरी $२०० की गगल्स बस में छूट गयी थी जिसको उन्होंने अगले दिन फ्लाईट से US भेज दिया था, मेरे ठिकाने पे. बहत सारे कहानियां हैं.

जापानीज़ लोगों को उस हराम खोर की असलियत नहीं मालूम था तो वह कितने लोगों को धोखा किया होगा जो अंतररास्ट्रीय थे और उसका कुछ नहीं कर सकते थे. उसने मुझ से ७०००० येन मारने की साजिश रचाया और मेरे गाडी को कब्जे में ले लिया, जो की कानूनन जुर्म था क्योंकि गाड़ी मेरे कब्जे में आ चुकी थी, लेकिन डरा धमका कर मेरी गाडी रख ली और मुझे पैदल वहां से अपने जगह आना पड़ा, फिर उसकी शाली जो जापानीज़ थी मुझे ढूंडने आई और मैं रस्ते पे बैठ के रो रहा था, उसने मुझे सहानुभूति से समझाया और अपने ऑफिस में लिया और मुझे अपनी गाडी दिलवाई, मैंने सर्त किया उसे इंस्टलमेंट में पैसा देने की और उसने बेकानुनी ढंग से मुझसे ३०००० या ४०००० येन हासिल किया, फिर मैंने उस से इंकार कर दिया क्यों की तब तक जापान में मेरी इन्फ्लुएंस और तजुर्बा बढ़ गया था. मुझे मालूम था वह बेकानुनी तरीके से ये सब कर रहा है और मैं उसे लेगाल्ली डिल कर सकता हुं. उसको भि डर आ गया था और वह चुप रहा. वरना मैं उसके कारनामे सारे लोगों के आगे खुलासा करता और वह तकलीफ में आ जाता. जब उसने मुझे चिट किया था वह बात २००४ की थी जब में USA में एक डेढ़ साल और जापान में २ साल रह चुका था, लेकिन उसके बाद US चला गया था और जापान में frequently आता था. ऐसा नहीं था की मैं किसी से भाग रहा था, लेकिन मैंने मन में ठान लिया था अगर वह कोई बेकानुनी तरीका अपनाता है तो मैं उसके साथ लडूंगा. (वह था एक माफिया और कुछ जापानीज़ लोगों को उसने नौकरी दी थी इसलिए जापानीज़ पोलिस या सर्कार उसके बारे में कुछ करने से पेहले सोचते, लेकिन मैं भि फाइट करने के लिए सोच लिया था, कितना दिन उसे डर के उसे पैसा देता रेहता !!)

लेकिन सिर्फ उस से नहीं मैं बहत सारे परिस्थितियां में पता कर लिया जापान में जिया कैसे जाता है, जिगर और फिगर के साथ. KFC में जाओ लड़कियों के साथ और काउंटर पे बोलो जापानीज़, मल में जाओ गर्लफ्रेंड के साथ और बोलो इंग्लिश, गाड़ी चलाओ used, लेकिन बात करो साहिबी, सच्चाई से पेश आओ पर डरो मत प्यार से. प्यार गुनाह नहीं है.

एक बार बस में मुझे एक आफगानी मिला था जिसे ना तो हिंदी मालूम थी ना इंग्लिश ना जापानीज़. तब तक मैं बहत कुछ सिख लिया था, इस शहर से उस शहर में कैसे जाना है, वगेरा वगेरा, काम से फुर्सत मिलते हि मैं ड्राईभींग पे चला जाता था, चाहे रात को १२ हो ४ हो, रेस्टुरांट खुले हमेशा रेहते हैं . अरे याद आया कैसे मेरे क्रेडिट कार्ड लेके काउंटर पे क्याशिअर ५ मिनिट तक सो गया बिल कुल खड़े खड़े. मैंने अपने साथी को मना किया उसे जगाने के लिए, जग गया अपने आप और बोला “ आ गोमेंनासाई” मेरी भूल हो गयी. लेकिन उसकी कहानी फिर कभी. उस आफगानी को मैं त्सुचिउरा या ईशिओका के लिए रस्ता बताया था. (या ये उशिकू था ये मुझे बिलकुल याद नहीं है, लेकिन ईशिओका से मेरी तालुकात और भि हैं, और कभी)

एक बार इम्मिग्रेसन ऑफिस में एक पाकिस्तानी वंदा से मिला था जो अपना नाम लिखना नहीं जानता था लेकीन पासपोर्ट का फॉर्म भरना था और उसे ये भि मालूम नहीं क्या कैसे किया जाये, क्यों की वह जापान में था मैंने उसको हेल्प किया, लेकिन एक वंदा मुझे किसी एअरपोर्ट में मिला था उसकी हालात में, जिसे अपना नाम लिखना नहीं आता था और शायद वह पाकिस्तान से हि था, क्या नाम था, अदनाम शामी या ऐसे कुछ, मैंने उसको हेल्प नहीं किया, मुझे यकीं नहीं था वह फोर्ज कर रहा था या सच था.

लेकिन जिस दिन ये सब निकाले जाते हैं बड़ी तादात में किया जाता है. ब्याच जॉब के तरह, और इसमें हर कोई सामिल होता है हर कोई शिवाय जिसने जापानीज़ औरत से या आदमी से शादी कर लिया हो. और जापानीज़ सिस्टम ज्यादाहतर पाकिस्तानी, बान्गलादेशी और श्रीलंका के नागरिकों को इन्नोसेंट और मदद-तारीफ समझता है क्योंकि वह बड़ी बातें नहीं करते इंडीआंस के तरह. इंडियन लोग किसी के भि नर्भ (नब्ज) खा सकते हैं, अपने खाने के बाद. (कभी सुना है: माँ मेरी नब्ज मत खाओ!!)

तो मैं पासपोर्ट के लिए किसी को पैसे क्यों दूँ? मैं एक लाइन में खड़ा हूँ एक डेढ़ घंटा से और व लाइन, काउंटर के नजदीक आ चुकी है, मेरे सामने सिर्फ ३ आदमी. काउंटर बंद हो गयी. और ये क्या, अभी तो ३०, ४० मिनिट बाकि हैं. लंच के लिए. मैं बाहार आया. व घुसखोर मोटा ऑफिस के क्याम्पस में आ गया था, बाहार के तरफ.

(मैं ढेंकानाल के RTO ऑफिस में एक ऐसा घुसखोर मोटा से भी मिला हूँ लास्ट इयर अपनी ड्राइविंग लाइसेन्स लेने के लिए, इनकी कहानी भी रोचक है, फिर कभी)

क्या चल रहा है? एंटरटेनमेन्ट.१२ बजे बाम्बू और रोप डैनसिंग. गवर्नमेंट ऑफिस के अन्दर, वो सिर्फ इसको अनुमति ही नहीं दिए थे, इस खेल को पर वोह घुसखोर क्लर्क भी अपने काउंटर बंद करके आ गया था ये बाम्बूरानी खेल देखने (बिल्लोरान्नी नहीं बाम्बूरानी). वह एक डराने धमकाने वाला चुतिया था जो घुस भी लेता था. मैंने उसे बोला अभी तक “१/२ आन आउआर” बाकि है और हम काउंटर पे आ गए थे. उसने बड़े घृणा के साथ बोला “अभी जाओ, लंच के बाद आना”. मैंने बोला “लंच के बाद तो इसके लिए ऑफिस खुलती नहीं और उसके लिए अभी से २ घंटा बाकि है”. उसने बोला “बेहेस मत कर, कल आना”. मैंने बोला “I am going to make a complaint to your officer, मैं एक कंप्लेंट दर्ज करूँगा तुम्हारे नाम पे”

वो आ गया ऑफिस के अन्दर गुस्से में. मैं गया और मेरे पीछे मेरे दोस्त. उसकी मेरे दोस्त के साथ बेहेस हुई तो मैं बिच में आ गया. वो रुक गया लेकिन उसको गुस्सा आ गया. मैं गया पासपोर्ट ऑफिसर के पास तो वो बिच में आ गया और बोला “क्या काम है?”, “मैं बोला तुम अपनी काम करो, इस से तुम को क्या? मुझे मिलना है”

(वो अपने काउंटर जो बाहार ही था वहां से मुझे फलो कर के आया था, रोकने के लिए, अपना काम तो करता नहीं, और तू तो पासपोर्ट ऑफिसर का PA नहीं है) .

तो उसने मुझे धका दिया और धका देके बाहार निकाल दिया. और मेरा दोस्त देख रहा है (मैंने उसकी मदद की और वो चुप खड़ा है) वो इसमें नहीं आना चाहता है जब की वह आ गया था. तो मैं भी रुक गया, मुझे मालूम था इस से आगे क्या होगा. एक तरफ शर्मिंदगी, पैसा दे रहे हैं, ऑफिस १० बार आ चुके हैं, एडूकेटेड हैं, ह्यांडसम हैं और क्या चाहिए, ठीक है शादी के लिए नहीं आए हैं लेकिन ये सब तो क्राइम है. “System is a legalized” mafia वाला.

कैसे भी हो हमारे काम बन गए, उनको मालूम हो गया था हम छोड़ने बाले नहीं हैं, या तो ऑफिसर से या फिर मीडिया को बता देंगे, उस टाइम में मीडिया का रोल इतना स्ट्रन्ग नहीं, न की आज. आज कल ज्यादा ढोंग चलता है. पैसे उडाओ और अपनी बोलो.

फिर उस ऑफिस से जवाब मिला की सब कुछ हो गया अब वो पोलिस भेरीफिकेसन के लिए भेजेंगे. उस टाइम तत्काल स्कीम नहीं आया था. तो २ ढाई महने लगते थे अगर आप २५ बार दौड़ें तब,. (कितने जगह दौड़ना पड़ता था!)

फिर हम आ गए घर में और फिर अपने यूनीभरसिटी में, पढाई चल रही है, सब कुछ प्लान के तहत करना पड रहा है, कितना एहम है टाइम, कहीं क्लास या एग्ज़ाम छुट जायेगी कहीं दुसरे सिटी में जाना है, सर्ठिफीकेट्स लेने में, और वो मुकर जायेंगे ऐन वक़्त पे, (इस्पे भी स्टोरी है, कैसे मेरे सामने माइग्रेसन सर्ठिफीकेट्स पड़े थे अपने कॉलेज के और क्लर्क बोलता है आपका कॉलेज का अभी आया नहीं है, और ये उत्कल यूनीभरसिटी की बात है, पान चबाके आते हैं, बैठते हैं एक जगह स्यालरी लेने के लिए, मुझे दिख गया “ढेंकानाल कॉलेज”, पीछे में. उस टाइम लोग इतना “राईट टु इन्फो” वाला झगडा नहीं करते थे किसी की ना तो हिमत थी ना कोई इसे मेहफुज या सच्चाई सोचता था, मैंने हिमत जुटाए और बोला वो पीछे का बंडल लाइए, अभी भी मुझे याद आ रहा है तस्वीर, आँखों में. उसने बंडल लाया, वो बुढा, और निकला उस में से मेरा “माइग्रेसन सर्ट”, सर्ठिफीकेट!!) इसको भी शायद मुझे कहीं पर भेजना था (VT वालों को)

फिर मैं गया थाने में, पूछ ताछ के लिए (enquiry बबुआ, कोइ encounter नहीं) उत्तर मिला आप का कागज़ आया है SP ऑफिस में, मैं गया SP ऑफिस अपने २४ इंच बाईसाईंक्ल में. SP ऑफिस में जवाब मिला ये तो आप के हमारे पास नहीं आए!! उत्कल युनिभर्सिटी वाली सिचुएसन लेकिन ये मामू लोगों का दफ्तर है, मैं वहां भी दे डालता (दिया हूँ एक दो बार, पोलिस को बोला, “ऊँची आवाज़ में बात नहीं, कानून तुम तोड़ते हो, हम नहीं,” आमेरिकान पोलिस को भी दिया हूँ लेकिन वो लोग बहत ही सराफत से पेश आते हैं, जैसे वो पोलिस जिसने मुझे “white male, blonde hair, blue eyes” बताया था, Greensboro, NC की सुबह थी, किसीको धोका हो सकता है इस धुप! में.)

मैंने खबर लिया अपनी नेटवर्क से (बहत ही तगड़ा रेहता है) कागज़ SP ऑफिस में ही है. अपने दोस्त को फ़ोन किया वो SP ऑफिस वालों को कफ्फी पिला चुका है, १०८ रुपये की, साला एकदम शिब मंदिर बन गया पोलिस का ऑफिस)

मेरे जीजा जी (छत पे सोया था बेहनोई, मैं गधा समझ के लात लगाई) फ़ोन घुमाये, बहत ही इन्फ्लूएन्सिअल थे, तो कागज़ वहां से एक दो दिन में चला गया. फिर कुछ हप्ते बाद पासपोर्ट ऑफिस से, इंडीआन पोस्ट से आ गया. इंसान का रखवाला, पासपोर्ट. उसे लेकर में चला गया कलिकता में, लम्बी लाइन. मेरे सामने एक लड़की जो दिखती थी “इसा देवल” जैसी. उसकी भिसा खारज हो गयी क्योंकि उसने ये बता दिया था की उसके भाई (अपनी भाई) दोनों रेहते हैं USA में. उसकी हुई थी साइकोलाज़ी की आड-मिसन Wisconsin, Milwaukee में. मैंने इसको ये बात बताया की मुझे चौकन्ना किया गया है सही सोर्स से की अगर आप के कोई रेलेटिव्स हैं तो मत बताओ क्योंकि वो सोचेंगे की आप वहां रेह जाओगे. अगर लड़की है तो सोचेंगे की कोई अमेरिकान बॉय फ्रेंड कर के उस से शादी करके सिटीज़ेन बन जायेगी. ऐसे क्या है तुम्हारे देश में जो तुम इतने बकवास सोचते हो. उसकी कैन्सल हो गयी. उसके आँख में आँसु. वो आई थी अपनी किसी नजदीकी भाई के साथ और होटल में बुक थी जो रूम, दोनों के लिए. इस से परेशान होने की कोई बात नहीं, उस टाइम इंडिया ज्यादा ऑनेस्ट था, आज कल भी ऑनेस्ट हो गयी लेकिन मुझे पता नहीं क्या चल रहा है. वो हम से विदा कर के चली गयी. दुःख हुई हमें. VA से WI बहत ही दूर है, क्या मैं कभी आता, लेकिन आप कभी ये साफ बता सकते?, जीन्दगी में सही निर्णय अपने आप हो जाते हैं और गलत भी. एक दो गलती की सज्जा हम लेते हैं अपने ऊपर.

मेरी इंटरभिऊ आई. ये एक तगड़ा औरत आमेरीका से, क्या, बोलते क्या उसको, आम्बासोडर? और एक गोरा उसकी सेक्रेटरी. क्वोश्चिन मिले ढेर सारे, क्या एम्बिएंस था रे. AC चल रही थी, बाल उड़ रहे थे. एकदम स्मार्ट ड्रेसिंग में थे (कट्टन जींस और कट्टन शार्ट) इसबार शार्ट का दाम INR ६०० तो प्यांट का बोलो? INR १५००. (हमेशा रेशिओ में रहो) भिसा मिलगई. उमंगें आंसमां में. लेके हो-टेल वापस आ गए. २ दिन से वहां थे और क्या पासपोर्ट में गलत dob लिखा है, पासपोर्ट वालों ने. लौटे, भिसा ऑफिस वाले बंद कर दिए थे, ४ या ५ बजे तक, बोले कल सुबह फिर आओ. (भिसा ऑफिस वालों ने पासपोर्ट ऑफिस का गलती दोहराया और पता चला पासपोर्ट ऑफिस ने DOB लिखा है १९७९ के जगह १९७०. वही गलती भिसा वालों दोहरा दीए. हम अपने ट्रेन के टिकेट क्यान्स्ल किये और रात को ठेहेरा फिर से होटेल में, तंदूरी और रोगन जोश खाया कलिकता का. नेक्स्ट डे सुबह भिसा वालों ने अपनी गलती कबुल कर लिया और दुसरे पेज में करेक्टेड़ भिसा दे दिया. हम ने कलिकता स्टेसन में शाम को ट्रेन लिया BBSR के तरफ. आफ्टरनुन में बैठे रहे स्टेसन में और मेरा दोस्त देखता रहा औरत लोगों को. ये पेहली बार नहीं थी, मुझे लगा मेरे दोस्त में कुछ परिवर्तन आ रहे हैं, वो भुबनेश्वर आया तो ऑटो रिक्शा में बैठा और औरत के तरफ चिलाया. मैंने ये सब अपने साथी-मंडल में बताया. सब को अच्छा लगा चलो अब इसको शामिल किया गया. )

२०१० में मुझे वो कहानी याद आई २००० की.

तो पासपोर्ट ऑफिस में क्या बदलाव आए हैं, तत्काल स्कीम आए हैं, ३ दिन में देने के लिए ३००० लेते हैं लेकिन लगभग २ हफ्ते में आ जाता है, पासपोर्ट . ऑफिस कॉर्पोरेटाइज्ड हो गयी है लेकिन भीड़ की बात मत करो. दिन में क्या ५०० लोगों की भीड़ को डील करते हैं और इतना अच्छा ऑफिस बनाया उसके सामने इतना स्पेस पर ऑफिस के अन्दर कोई स्पेस नहीं (अगर भीड़ है तो पता चलेगा) पार्किंग था बाहार लेकिन उसको ठीक से बनाया नहीं(मिट्टी का था और बारिश हो गयी थी). और ऑफिस को वहां बनाया है जहाँ हमेशा भीड़ रेहता है और थोडा बे-काबु हो सकता है इसे झेलना. मैं अपनी कार लेके गया. मुझे लगता था मैं Stephen Hawking हूँ लेकिन अबकी बार मेरे सारे अंग काम कर रहे हैं. पेहला दिन मुझे लौटना पड़ा किसी बजह. दूसरा दिन में और तयार होके गया, अपने सारे डक्युमेंट्स के साथ, मेरा केस शायद आसान था क्योंकि रि-निऊ होने वाला था. इंटरनेट से अगर प्रिंट ले सकता हुं तो उसे सब्मिट क्यों नहीं कर सकता, वगेरा वगेरा. ७ बजे से लाइन लगाया ५ या ७ घंटे चले गए पुरे काम बन ने में. कुछ और भि परेशानियाँ आए, याद नहीं. लेकिन ये देखने को मिला, हम लाइन में खडे हैं और हमारे आगे १०, १५ घुस्पैठियाँ. इसको तो देखना चाहिए. पहले से क्युपन नहीं देते हैं, पेहले लाइन लगाओ, फिर डक्यूमेंट दो, फिर क्युपन मिलेगा, फिर वो बुलाएँगे. क्युपन लेने के बाद और पांच ghanta. कोई LED नहीं लगा है, जो आप को अपनी नंबर बताएगा. बुलाएँगे, २००, ३०० की भीड़ में और आप मिस भि कर सकते हैं, बना ऐसे ही की आप को कुछ दिखाई नहीं देगा अगर भीड़ है तो. और कोई नंबर डिफाइन नहीं करते हैं हमें आज कितनों को सर्भिस देना है. और ज्यादाह्तर लोग आते हैं जो दुसरे देश में लेवर करने के लिए जाना चाहते हैं. उल्टा स्टोरी.

वहां भि २/४ दलाल मिले, जो आप से पैसा लेते हैं पासपोर्ट लेने के लिए (२०१०) और आप की पासपोर्ट भि गुम हो सकती है, फिर आप लेगाली डील करना ट्रबलसम हो जायेगा. ऐसा स्टोरी मुझे सुन ने को मिला बाद में. लेकिन मेरे नियम पेहले से बने हैं, दो मत लो मत. हमारे आगे १०/१२ घुश्पैठियाँ. एक बुढा आया, ४५, ५० साल का होगा. वो ध’का देके दो को निकाल दिया, बोला “ये घुश्पैठियाँ हैं”. वो डर के चले गए. लेकिन जो लोग इन दोनों के पीछे पड़े हुए थे वो सब घुश्पैठियाँ थे और आराम से शरीफों के तरह लाइन में रहे. फिर ये बुढा आया और मुझसे बात करने लगा, अछे से, ऐसा लगता है जैसे कोई धर्मात्मा, रामदेव जो दूसरों की ख़ुशी के लिए अपनी बलिदान दे दिया. लेकिन था दलाल (मुझे शक हो रहा था पर सही निकला) तो दलाल और घुसखोर अपने रूप बदल दिए हैं अपने बरताव बदले हैं और कुछ जीने के सहारा मिल जाता है उनको. पासपोर्ट ऑफिस के अन्दर झगडा चल रहा था (शायद एक दिन पेहले) एक वकील अपना जलवा दिखाना चाहता है और दो ऑफिसर अपने. बहत ही उत्तेजित हो गए दोनों ऑफिसर, उनकी ऑफिस, उनकी संख्या, उनकी मर्जी. मैं बोला, ऐ हटा सावन की घटा, ये अछि बात नहीं हमारे सामने आप की ये नमूना. हम ज्यादा देर झेल नहीं सकते और फिर एक ऑफिसर ने मुझे इन्फ़र्मेसन दिया जो मैंने माँगा था.

अगले दिन जिस दिन फिर मैंने दलाल को देखा (और शायद Uttam महान्ति को भि, बहत ही गोरा दीखता था वो और जापानीज़ के तरह दीखता था) मैंने अपनी संभाल ली और मेरा नंबर ५४ आने के बाद (मैं पहुंचा था १० या १२ नंबर पे, क्या चलता है) अन्दर गया. मैं मिला पासपोर्ट ऑफिसर से. मेरे सारे डक्यूमेंट मौजूद थे. मुझे उसने डक्यूमेंट मांगे, मैंने दिया. फिर उसने बोला अप्लीकेसन या ऐसे कुछ, मैं ने बोला “दिया ना”, वो बोलता है “Don’t lie” ये एक छोटी सी और अज्ञ्न्ता से हुई गलती थी जिसको मैंने तुरंत जान लिया तो उसे बोला “sorry, it’s with me”. बोलता “you were lying” मेरी चढ़ गयी. मैंने बोला आज इसको जरा देते हैं. मैंने बोला “don’t even talk that language. Do you know who you talkin with?”. वो बोला “आप ने झूठ बोला”, मैंने बोला “ये झूठ नहीं, गलती थी, और मैंने अपनी गलती को जाना और उसके लिए सॉरी बोला”. फिर वो बोला “मैं इस ऑफिस में बहत सालों से हूँ, मैं सब कुछ जानता हुं”, मैंने बोला “अब मुझे पता चला आप क्यों यहाँ पर इतने सालों से हैं” (मैंने सोचा: क्यों की आप को तमीज़ नहीं आती, तो आप का प्रमोसन नहीं होती बरना आप देल्ही या कलिकता चले गए होते)

पासपोर्ट ग्रांटेड हो गयी.(बहत ही अच्छा इंसान था) मैं गया साइड वाले ऑफिस में और वहां दाखिला किया अपने सारे कागजात और इस देश की जदो जहत ३ हज़ार गंधियाँ. कितना सचा था वो इंसान जिसने अपने आप को रुपिया के ऊपर पाया और देखा इस देश की सारे काले करतुतें. काला धन कहाँ से कहाँ जाता है. रामदेव के हाथों से कपिल शिवल के हाथ में जाता है. गाँधी सब देखता है.

बहत कुछ बदल गए हैं, बहत कुछ बदलना है, पर हमारी उम्र भि तो बढती रहती है…बचों के लिए शायद ये देश अच्छा बन जाये…

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