भगबान तेरे साहिल के कदमो- रेहम पे आया हूँ
अगरबती ना सही बंदगी लाया हूँ (ise ulta bhi sakte ho)
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तुझे पड़ी थी इश्क की इम्तिहान लेना
मेरी तो जान और जाफरी दोनों जख्म हैं
इश्क की ख़ुशी और ना ख़ुशी में चुस्त हूँ
मेहफ़िल के रंग सिर्फ एक याद बनगया

टकीला में प्यार की खुशबु नहीं रेहती
इसे लेने के बाद होश पे काबू नहीं रेहती
दो घूंट मुझे शराबी बनाया
हुस्न को होश के साथ कौन देखता है ?

कबाली तो सपने में भी आ सकते हैं
हुस्न की इर्द में लब्जों की कमी रेहती है
इश्क मशहूर हुई थी हुस्न की हाँ पे
इश्क की मैनत और बेवफाई दोनों शरीफ थे

पतली गली नसीब होना एक इतफाक है
गली में आके कितनों को अपना नाम याद रेहता है?
हुस्न किसीको घायल नहीं करती
हुस्न की याद में जख्म नींद में रेहती है
होश तो यूँ ही आती जाती है
हुस्न के नाम पर इसे बदनाम क्यों किया जाता

तू हस भी सकता है अपने ही मैनत में
हुस्न ने तुझे सिर्फ ऐतला किया है

मजहब का इश्क में क्या पेहचान
इश्क तो अच्छों को डूबा सकता है
बोलने की अंदाज पे मत जा
यहाँ दो चार क़त्ल भी हो सकते हैं

तुम बेफिक्र बोतल में तैर लो
जब नशा उतरेगा तुम खुद को शरीफ और नशा को यार मान लेना
बस बोतल को रस्ते में मत तोडना
क्योंकि ये तुम्हारी यार की तौहीन है

तुम जुवान पे जो इतने गलती की ऐलान करते हो
ये तुम्हे चिन्गिज़ खान का अवतार नहीं बनाता
ताकत तो तुम्हारे टूट भी सकती है
अगर तुम खुद को आइना के आगे लाओगे
जुबान फिसल के जख्म हो सकती
मरहम तो घुटनु के ही इलाज है

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